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योगी सरकार ने गौ-आधारित प्राकृतिक खेती के लिए तैयार की योजना

योगी सरकार ने गौ-आधारित प्राकृतिक खेती के लिए तैयार की योजना

उत्तर प्रदेश राज्य में आर्गेनिक खेती (Organic farming) के प्रोत्साहन हेतु एवं गौ संरक्षण के हेतु प्रदेश सरकार द्वारा बड़ा कदम उठाया गया है। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा गौ आधारित प्राकृतिक कृषि योजना बनाई है। इस योजना के अंतर्गत लगभग पौने तीन सौ करोड़ रुपए का व्यय होना है। गौ संरक्षण हेतु उत्तर प्रदेश की योगी सरकार बेहद सजग और जागरुक है। गौ-मूत्र एवं गाय के गोबर का उपयोग औषधियों एवं खेती बाड़ी के लिए हो रहा। गोवंशों के संबंध में अब बड़ी पहल उत्तर प्रदेश सरकार के स्तर से की जा रही है। प्रदेश सरकार द्वारा गोवंश आधारित प्राकृतिक कृषि को प्रोत्साहन देने की पूर्ण रणनीति तैयार करली है। इसकी वजह से किसानों का काफी फायदा होगा।

इस राज्य में होगी गौ आधारित खेती

उत्तर प्रदेश राज्य सरकार द्वारा उच्च स्तर पर गौ आधारित कृषि करने की योजना बना रही है। योजना के अंतर्गत राज्य के 49 जनपदों के 85,750 हेक्टेयर में गौ आधारित प्राकृतिक खेती की जाएगी। इस कृषि में गोवंशों से जुड़ी खादों का उपयोग किया जाएगा। रसायन मुक्त प्राकृतिक खेती द्वारा कृषि उत्पादन की गुणवत्ता अच्छी होगी। इसकी सहायता से भूमि या मृदा की उर्वरक शक्ति अच्छी होगी। साथ ही, प्राकृतिक खेती के अंतर्गत जो भी अनुदान मिलेगा। उसको भी प्रत्यक्ष रूप से कृषकों के खाते में भेजा जाएगा। जो किसान प्राकृतिक कृषि की ओर रुख करना चाहते हैं और करेंगे। उनको सरकार के माध्यम से बढ़ावा भी दिया जाएगा।
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गंगा को प्रदूषित होने से बचाने के लिए सरकार कर रही हर संभव प्रयास

उत्तर प्रदेश सरकार इस परियोजना के माध्यम से गंगा को रसायनिक प्रदूषण से बचाने की पहल कर रही है। योजना के तहत गंगा के किनारे स्थित 27 गांव शम्मिलित होंगे। इस योजना से गंगा के आसपास 5-5 किमी का इलाका कवर किया जाना है। जिससे कि गंगा को प्रदूषित होने से बचाने में सहायता मिल सके। इससे गंगा को निर्मल करने की केंद्र सरकार की योजना को भी पंख लग सकेंगे।

योगी सरकार जारी करेगी प्राकृतिक खेती पोर्टल

प्राकृतिक खेती के उत्पादन को प्रोत्साहन देने हेतु राज्य सरकारें अहम पहल की जाएगी। इसी क्रम में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी यूपी दिवस के अवसर पर प्राकृतिक खेती पोर्टल जारी करेंगे। जो परियोजना केंद्र एवं राज्य सरकार की एकमत पहल है। इसकी कुल लागत 246 करोड़ रुपये की होगी। आगामी चार वर्षों के अंतर्गत प्रति हेक्टेयर के अनुसार केंद्र और राज्य सरकार के संयुक्त प्रयास से चलने वाली इस कल्याणकारी परियोजना के अंतर्गत प्रति हेक्टेयर 28714 रुपये आगामी 4 वर्षों तक खर्च किए जाने हैं।

इस राज्य में 50-50 हेक्टेयर के 1715 क्लस्टर बनाने जा रही है सरकार

परियोजना के अंतर्गत राज्य भर में क्लस्टर स्थापित किए जाने हैं। प्रदेश के 49 जनपदों में 50-50 हेक्टेयर के 1715 क्लस्टर विकसित करने की योजना है। योजना के अंतर्गत निर्धारित किया गया है, कि किसान के पास एक हेक्टेयर से अधिक भूमि नहीं होनी चाहिए। प्रत्येक क्लस्टर में कृषकों का समूह भी जुड़ सकेगा।

इस परियोजना के तहत देशी गाय रखना अत्यंत आवश्यक है

दरअसल, सरकार की परियोजना ही गाय से संबंधित होती है। इस वजह से राज्य सरकार द्वारा निर्धारित किया गया है, कि प्रत्येक कृषि करने वाले कृषक के पास एक देसी गाय होनी अनिवार्य है। इस वजह से सड़कों पर असहाय व छुट्टा घूमने वाली गायों के संरक्षित पालन में वृध्दि हो सकेगी। गाय का गोबर गौ मूत्र, जीवामृत, बीजामृत निर्माण में काफी सहायक होगा। साथ ही, एक विशेष प्रावधान जारी किया गया है, कि जो किसान प्राकृतिक कृषि कार्य करेंगे। उनको केवल बीज ही खेत से बाहर निकालना होगा। विशेषज्ञों ने इस खेती को जीरो बजट की खेती का नाम दिया है।
खरीफ सीजन क्या होता है, इसकी प्रमुख फसलें कौन-कौन सी होती हैं

खरीफ सीजन क्या होता है, इसकी प्रमुख फसलें कौन-कौन सी होती हैं

आज हम आपको खरीफ फसल से जुड़ी कुछ अहम बात बताने जा रहे हैं। इस लेख में जानेंगे कि खरीफ की फसल कौन कौन सी होती हैं और इन फसलों की बुवाई कब की जाती है। 

भारत में मौसम के आधार पर फसलों की बुवाई की जाती है। इन मौसमों को तीन भागों में वर्गीकृत किया गया है। खरीफ फसल, रबी फसल एवं जायद फसल। लेकिन आज हम खरीफ की फसल के बारे में आपको बताने वाले हैं। 

अगर हम खरीफ की फसलों के विषय में बात करें तो प्रमुखतः खरीफ की फसलों की बुवाई का समय जून - जुलाई होता है। जो कि अक्टूबर माह में पककर तैयार हो जाती हैं। 

बतादें कि अधिक तापमान व आर्द्रता का होना खरीफ फसलों के लिए अत्यंत आवश्यक होता है। वहीं जब खरीफ फसलों का पकने का समय आता है। तब शुष्क वातावरण का होना आवश्यक होता है। 

एक तरह से खरीफ फसलों को मानसूनी फसल भी कहा जाता है। खरीफ शब्द का इतिहास देखें तो यह एक अरबी शब्द है, जिसका अर्थ पतझड़ होता है। वर्षाकाल में इसकी बुवाई की जाती है। 

लेकिन कटाई के दौरान पतझड़ का समय आ जाता है। खरीफ फसलों को उच्च आद्रता और तापमान की जरुरत होती है। जानकारी के लिए बतादें कि एशिया के अंदर भारत, बांग्लादेश एवं पाकिस्तान में खरीफ की फसलों की बुवाई की जाती है। 

खरीफ फसलों की बुवाई जून-जुलाई में होती है। लेकिन भिन्न भिन्न स्थानों पर मानसून आने का वक्त और वर्षा में अंतराल होने की वजह से बिजाई के दौरान भी फासला देखा जाता है।

खरीफ की कुछ प्रमुख फसलें

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि धान, मक्का, बाजरा, जौ, ज्वार, कोदो, मूंगफली, सोयाबीन, तिल, अंडी (अरंण्ड), अरहर, मूंग, उड़द, गन्ना, सेब, बादाम, खजूर, अखरोट, खुबानी, पूलम, आडू, संतरा, अमरुद, लीची, बैगन, लीची, टिंडा, टमाटर, बीन, लोकी, करेला, तोरई, सेम, खीर, ककड़ी, कद्दू, तरबूज, लोबिया, कपास और ग्वार आदि खरीफ की कुछ प्रमुख फसलें हैं।

चावल

चावल एक तरह की उष्णकटबंधीय फसल है, चावल की फसल जलवायु में नमी एवं वर्षा पर निर्भर रहती है। भारत विश्व में दुसरे नंबर का चावल उत्पादक देश है। 

चावल की खेती के आरंभिक दिनों में सिंचाई हेतु 10 से 12 सेंटीमीटर गहरे जल की आवश्यकता पड़ती है। चावल की साली, अमन, अफगानी, बोरो, पलुआ और आस जैसी विभिन्न प्रजतियाँ होती हैं। 

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धान की खेती हेतु तकरीबन 24 % फीसद तापमान व 150 सेंटीमीटर की जरुरत पड़ती है। विशेष तौर पर भारत के हरियाणा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और पंजाब में चावल का उत्पादन किया जाता है।

कपास

कपास एक उष्णकटबंधीय एवं उपोष्णकटिबंधीय फसल में आती है। भारत कपास उत्पादन के मामले में विश्व में तीसरे स्थान पर आता है। कपास एक शुष्क फसल है। परंतु, जड़ों को पकने के दौरान जल की आवश्यकता पड़ती है। 

शाॅर्ट स्टेपल, लाॅन्ग‌ स्टेपल, मीडियम स्टेपल आदि कपास की कुछ किस्में हैं। कपास की खेती के लिए 21-30°C तापमान की जरूरत पड़ती है। कपास की फसल में 50 से 100 सेंटीमीटर वर्षा की जरूरत होती है। 

काली मृदा में कपास की खेती काफी अच्छी होती है, जिससे उत्पादन अच्छा-खासा मिलता है। भारत के राजस्थान, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, तमिल नाडु, गुजरात, महाराष्ट्र, उड़ीसा में कपास का उत्पादन किया जाता है।

मूंगफली

भारत में मूंगफली की खेती मुख्यतः कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिल नाडु, गुजरात में की जाती है। मूंगफली की बुवाई ज्यादातर मानसून के आरम्भ में की जाती है। 

मूंगफली की बुवाई 15 जून से लेकर 15 जुलाई के बीच की जाती है। मूंगफली की बुवाई के लिए भुरभुरी दोमट एवं बलुई दोमट मृदा उपयुक्त होती है। साथ ही, भूमि में समुचित जल निकासी की व्यवस्था होनी चाहिए।

लौकी

लौकी की यानी की घीया शारीरिक स्वास्थ्य के लिए काफी अच्छी मानी जाती है। लौकी के अंदर पोटेशियम, मैग्नीशियम, आयरन, विटामिन बी और विटामिन सी पाए जाते हैं। 

इसके अतिरिक्त लौकी विभिन्न गंभीर रोगों जैसे कि वजन कम करने, मधुमेह, कोलेस्ट्रॉल और पाचन क्रिया में भी इस्तेमाल किया जाता है। लौकी की खेती ग्रीष्म एवं आर्द्र जलवायु में होती है। 

लौकी का सर्वाधिक उत्पादन उत्तर प्रदेश, बिहार और हरियाणा में किया जाता है। बलुई मृदा एवं चिकनी मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है। 

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टमाटर

जब हम सब्जी की बात करें तो टमाटर का नाम ना आए ऐसा हो ही नहीं सकता। विटामिन एवं पोटेशियम के साथ-साथ टमाटर के अंदर विभिन्न प्रकार के खनिज तत्व विघमान रहते हैं। 

जो कि सेहत के लिए काफी लाभकारी साबित होते हैं। भारत के उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, बिहार और कर्नाटक आदि राज्यों में टमाटर का बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जाता है। 

टमाटर की किस्मों की बात की जाए तो इसकी अरका विकास, अर्का सौरव, सोनाली, पूसा शीतल, पूसा 120, पूसा रूबी एवं पूसा गौरव आदि विभिन्न देशी उन्नत किस्में उपलब्ध हैं। 

इसके अतिरिक्त पूसा हाइब्रिड-3, रश्मि, अविनाश-2, पूसा हाइब्रिड-1 एवं पूसा हाइब्रिड-2 इत्यादि हाइब्रिड किस्में उपलब्ध हैं।

लीची

लीची एक अच्छी गुणवत्ता वाला रसीला फल होता है। लीची का सेवन करने से अच्छा पाचन तंत्र और बेहतर रक्तचाप जैसे कई सारे शारीरिक लाभ होते हैं। लीची की सबसे पहले शुरुआत या खोज दक्षिणी चीन से हुई थी। 

भारत विश्व में लीची उत्पादन के मामले में दूसरे स्थान पर आता है। भारत के जम्मू कश्मीर, मध्य प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश को देखी-देखा अब बिहार, पंजाब, पश्चिम बंगाल, असम, त्रिपुरा, उत्तराखंड, झारखण्ड, छत्तीसगढ़ और उड़ीसा में भी लीची की खेती होने लगी है।

भिंड़ी

भिंड़ी विभिन्न प्रकार की सब्जियों में अपना अलग पहचान रखती है। काफी बड़ी संख्या में लोग इसको बहुत पसंद करते हैं। भिंडी के अंदर कैल्शियम, विटामिन ए, विटामिन बी, फास्फोरस जैसे कई तरह के पोषक तत्व भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। 

भिंड़ी का सेवन करने से लोगों के पेट से संबंधित छोटे-छोटे रोग बिल्कुल समाप्त हो जाते हैं। भिंड़ी की खेती के लिए बलुई दोमट मृदा सबसे उपयुक्त मानी जाती है। 

भिंडी की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु की बात की जाए तो इसकी खेती के लिए अधिक गर्मी एवं अधिक ठंड दोनों ही खतरनाक साबित होती हैं। 

यदि हम भिंड़ी की किस्मों की बात करें तो पूसा ए, परभनी क्रांति, अर्का अनामिका, वीआरओ 6 और हिसार उन्नत इत्यादि हैं।

कृषि क्षेत्र में जल के अतिदोहन से विनाशकारी परिणाम झेलने पड़ सकते हैं - कृषि वैज्ञानिक

कृषि क्षेत्र में जल के अतिदोहन से विनाशकारी परिणाम झेलने पड़ सकते हैं - कृषि वैज्ञानिक

नीति आयोग के प्रोफेसर रमेश चंद का कहना है, कि विभिन्न विकसित और विकासशील देशों के मुकाबले भारत में प्रति टन फसलीय उपज में 2-3 गुना ज्यादा जल की खपत होती है।

प्रो. चंद ने कहा कि "कृषि क्षेत्र सिंचाई परियोजनाओं में संसाधनों की बर्बादी, फसल के गलत तौर-तरीकों, खेती-बाड़ी की गलत तकनीकों और चावल जैसी ज्यादा पानी उपयोग करने वाली एवं बिना मौसम वाली फसलों पर बल देने से समस्या विकराल रूप धारण करती जा रही है। 

समस्या का शीघ्र समाधान करने की जरूरत है, जिसके लिए सटीक खेती और आधुनिक तकनीकों का चयन करने की आवश्यकता है। विशेष तौर पर कम पानी वाली फसलों पर अधिक बल देना होगा।"

जल के अतिदोहन को रोकना बेहद जरूरी 

“भारत कई विकसित और विकासशील देशों के मुकाबले में 1 टन फसल उपज करने के लिए 2-3 गुना अधिक पानी का उपयोग करता है। खेती का रकबा बढ़ा है, लेकिन ज्यादातर रबी फसलों का, जब बारिश न के बराबर होती है। इसे बदलने की जरूरत है। राज्य सरकारों को विशेष रूप से स्थानीय पर्यावरण और भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार खेती-बाड़ी को बढ़ावा देने की जरूरत है।” 

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यह बात नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद, धानुका समूह द्वारा विश्व जल दिवस 2024 के अवसर पर नई दिल्ली में आयोजित एक समारोह में मुख्य भाषण देते हुए कही गई।

देश में सिंचाई परियोजनाओं पर अरबों रुपये खर्च

वर्ष 2015 से पहले भारत के सिंचाई बुनियादी ढांचे की दुर्दशा पर प्रकाश डालते हुए, प्रोफेसर रमेश चंद ने आगे कहा, “1995 और 2015 के बीच, छोटे-बड़े सभी तरीके के सिंचाई परियोजनाओं पर अरबों रुपये खर्च हुए। लेकिन, सिंचित जमीन उतनी ही रही। इसमें बड़े बदलाव की आवश्यकता थी और 2015 से केंद्र सरकार ने स्थिति का आंकलन कर तंत्र को बदल दिया। परिणामस्वरूप, पिछले कुछ वर्षों से सिंचित भूमि हर वर्ष 1% बढ़ते हुए 47% से 55% हो गई है।”

कम जल खपत में अधिक भूमि की सिंचाई

दरअसल, कम पानी निवेश में सिंचित भूमि में इजाफा करने पर जोर देते हुए भारत सरकार में कृषि आयुक्त डॉ पी के सिंह ने कहा,“जल शक्ति मंत्रालय के सहयोग से हम जमीन के ऊपर के पानी के बेहतर उपयोग के तरीकों पर काम कर रहे हैं। 

उदाहरण के लिए, यदि एक नहर का पानी वर्तमान में 100 हेक्टेयर कृषि भूमि को सिंचित कर रहा है, तो हम विभिन्न साधनों का उपयोग करके समान मात्रा में पानी का उपयोग करके इसे 150 हेक्टेयर तक कैसे ले जा सकते हैं।

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आईसीएआर के उप महानिदेशक (कृषि शिक्षा) डॉ. आर सी अग्रवाल ने कृषि क्षेत्र में पानी के सही उपयोग के बारे में किसानों और युवाओं को शिक्षित करने की आवश्यकता पर जोर दिया। 

डॉ. अग्रवाल ने कहा, “हम एक पाठ्यक्रम डिजाइन कर रहे हैं, जो उन्हें कृषि क्षेत्र में पानी के उपयोग के बारे में जागरूक करेगा और समाधान प्रदान करेगा।”

आधुनिक तकनीकों के इस्तेमाल से जल की खपत कम होगी 

बतादें, कि शुरुआत करते हुए धानुका समूह के चेयरमैन आरजी अग्रवाल ने कृषि कार्यों में आधुनिक तकनीकों का ज्यादा से ज्यादा उपयोग पर बल दिया। 

उन्होंने कहा कि “लगभग 70% प्रतिशत पानी का उपयोग कृषि उद्देश्यों के लिए किया जाता है। ड्रोन, स्प्रिंकलर, ड्रिप सिंचाई और जल सेंसर जैसी आधुनिक तकनीकों के इस्तेमाल से कृषि उद्देश्यों के लिए पानी की जरूरत को काफी कम करने में सहायता मिलेगी। इससे पानी की बर्बादी को काफी हद तक कम करने में भी सहायता मिलेगी।”

टर्की बेरी पौधा से किसानों को होगा पांच गुना लाभ, जानें कैसे

टर्की बेरी पौधा से किसानों को होगा पांच गुना लाभ, जानें कैसे

खेती-किसानी वर्तमान में कृषकों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। क्योंकि, किसान खेती कर नौकरी से कहीं ज्यादा कमा रहे हैं और अपने पूरे परिवार का पालन पोषण भी कर रहे हैं। 

यदि आप भी खेती करने के बारे में विचार कर रहे हैं, तो आज हम आपके लिए एक ऐसे पौधे की जानकारी लेकर आए हैं, जिसे उगाने से आप 5 प्रकार की सब्जियां हांसिल कर सकते हैं। दरअसल, जिस पौधे की हम बात कर रहे हैं, वह टर्की बेरी का पौधा/ Turkey Berry Plant है। 

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि एक ही पौधे से पांच सब्जियां हांसिल करने की शानदार कोशिश मध्य प्रदेश के खेड़ी गांव के मूल निवासी किसान देवेंद्र दवंडे द्वारा की गई है। टर्की बेरी पौधा/Turkey Berry Plant खेती में एक नवीन क्रांति लाने में सहायता कर सकता है। 

जानिए टर्की बेरी पौधा से कितनी सब्जियां मिलेंगी ?

किसान टर्की बेरी पौधा से 5 प्रकार के बैंगन और टमाटर की खेती कर सकते हैं। इस पौधे की सबसे बेहतरीन खूबी यह है, कि किसान इसे बड़ी सुगमता से कम जगह पर भी उगाकर मोटी आय कमा सकते हैं। इसके अतिरिक्त यह एक पौधा उत्पादन के मामले में भी काफी अग्रणीय स्थान पर हैं। समान्य पौधे की तुलना में इस पौधे की उत्पादन क्षमता काफी ज्यादा है। 

टर्की पौधे के लिए कृषि वैज्ञानिकों से प्रशिक्षण लिया 

किसान देवेंद्र दवंडे ने टर्की पौधे से बेहतरीन लाभ प्राप्त करने के लिए कृषि वैज्ञानिक से ग्राफ्टिंग का प्रशिक्षण प्राप्त किया। बतादें, कि इस दौरान उन्होंने दो जंगली बैंगन के पौधे लगाए। उन्होंने एक अपने घर पर और दूसरा पंचमुखी हनुमान मंदिर के पास लगाया। 

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इस संदर्भ में दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट का कहना है, कि किसान देवेंद्र दवंडे ने जो हनुमान मंदिर के पास जंगली बैंगन लगाएं उसकी उन्होंने ग्राफ्टिंग की और साथ ही उन्होंने हाइब्रिड औऱ देसी टमाटर के पौधे की भी ग्राफ्टिंग की। इन दोनों ही पौधों की ग्राफ्टिंग करने के पश्चात किसान देवेंद्र को शानदार उपज हांसिल हुई। 

पौधों से बेहतर उपज के लिए नवीन तकनीक

अगर आप अपने खेत में टमाटर, भिंडी, आलू और मिर्ची के पौधे की ग्राफ्टिंग करते हैं, तो ऐसे में किसान कम खर्चा में इन पौधों से बेहतरीन लाभ उठा सकते हैं। 

साथ ही, ये पौधे इस विधि में काफी सही ढ़ंग से पनपते हैं और ज्यादा उपज भी प्रदान करते हैं। किसान इस विधि के जरिए से कम स्थान पर अधिक उपज प्राप्त कर सकते हैं। 

इसके अतिरिक्त इसमें एक ही पौधे से बहुत सारी फलियां भी पा सकते हैं। पौधों की सुरक्षा के लिए ग्राफ्टिंग विधि सबसे शानदार विकल्प है। 

क्योंकि, इन पौधों में रोग लगने की संभावना अत्यंत कम होती है। इस विधि से किसान कम पानी व कम खाद में भी अच्छी उपज प्राप्त कर सकते हैं।